कविता-गीत

पूर्वोत्तर मैथिल

मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समितिक त्रैमासिक पत्रिका

पूर्वोत्तर मैथिलक अप्रैल-जून 2010

प्रेम कविता
राजदेव मंडल- दूटा प्रेम कविता- १.युग्मक फाग-पत्री आ २.आगमन

२.कृष्णमोहन झा-हमर प्रेम

१.राजदेव मंडल- दूटा प्रेम कविता


१. युग्मक फाग-पत्री

(प्रथम)

फगुआक रंग

लागल अंग-अंग

जागल अनंग

अहाँ नहि छी संग।

(द्वितीय)

शीत भागल

बसंत जागल

पिक पागल

कतए छी अभागल।

(तृतीय)

रितुराजक सुमन

झूमैत कण-कण

पिपासित मन

अहाँ छी दुसमन।

(चतुर्थ)

कहने रहि- नहि घबराएब

हम शीघ्रे आएब

आब कतेक कमाएब

ई मधुमास पुनः पाएब।

(पंचम)

परेमक संगहि विरह रहत

जीनगीक संगहि गिरह रहत

आब कतेक मन दुख सहत

आउ न फगुआ की कहत।



२.आगमन

अहाँक आगमनसँ

अंत भऽ गेल

आँखित पतीक्षा

आस छल आएब अहाँ

किन्तु

नहि जनैत छलौं

आबि सकब अहाँ

एतेक शीघ्र

सोचने छलौं

अहाँक स्पर्श होएत

मृदुल आओर कोमल

मलयानिल सन सुखद

परन्तु

अहाँक अएलासँ

झन-झना उठल

हमर हृदय

किएक तँ

अहाँक आएब नहि अछि सच्चा

कहि रहल गोदीक बच्चा

पतझड़ी जिनगीक आब

हमरा करए पड़त सामना

तइयो अहाँक लेल

कऽ रहल छी मंगल कामना।




कृष्णमोहन झा

हमर प्रेम


हमर ठोरक पपड़ी पर जे एकटा मर्म सुखा रहल अछि
हमर जिह्वा पर जे धूरा उड़ि रहल अछि
हमर सोनितक धार सँ जे धधरा उठि रहल अछि
हमर देहक शंख सँ जे समुद्रक आवाज आबि रहल अछि
हमर आत्माक अंतरिक्ष मे जे चिड़ै-चुनमुनी कलरव क’ रहल अछि
हमर स्मृतिक गाछ पर जे झिमिर-झिमिर बरखा भ’ रहल अछि
तकरा सभक चोट आ खोंच केँ
टीस आ मोंच केँ
रूप आ रंग केँ
स्वर आ गंध केँ
कोना पानक एकटा बीड़ा बनाक’
हम अहाँक आगू राखि दी आ कही-
लिअ’ ग्रहण करू
ई थिक अहाँक प्रति हमर प्रेम…

जखन कि हमरा बूझलए
जे हमर प्रेम
गुड़ियाम मे बान्हल एक टा पियासल बरद अछि
जे खाली बाल्टी केँ देखि-देखिक’ भरि राति हुकरैत अछि

हमर प्रेम अछि
छिट्टा सँ झाँपल एक टा छागर
जे बन्द दुनिया सँ बहरयबाक बेर-बेर चेष्टा करैत अछि

हमर प्रेम धूरा-गर्दा मे जनमल एक टा टुग्गर चिलका अछि
जे दीने-देखार हेरा गेल अछि
बीच बाजार मे

तखन अहीं कहू
कोना हम अपन आत्माक फोका केँ
एक टा मृदुल भंगिमाक संग अहाँक सम्मुख तस्तरी मे राखि दी
आ कही-
लिअ’ ग्रहण करू…

हमर प्रेम जँ किछु अछि तँ एक टा फूजल केबाड़
हमर प्रेम जँ किछु अछि तँ एक टा कातर पुकार
कि आउ
अइ दुनियाक सभ सँ कोमल आ सभ सँ धरगर चीज बनिक’
आबि जाउ

अहाँक स्वागत मे
हमरा ठोर सँ ल’क’ अहाँक ओसार धरि जे ओछाओल अछि
ओ कोनो कालीन नहि
अहाँक तरबा लेल व्यग्र
खून सँ छलछ्ल करैत हमर ह्रदय अछि

आ हमर हड्डीक प्राचीन अंधकार मे
ओसक एक टा बुन्न सन कोमल
अनेक युग सँ अहाँक बाट ताकि रहल अछि हमर प्राण…

हमर प्राण अछि अहाँक आघात लेल आतुर
अहाँक आघात एहि जीवनक एक मात्र त्राण